Friday, November 21, 2008

चुनाव सरगर्मी

विधानसभा की सभी सीटों में यदि हो युवा
तो उस राज्य और देश का उद्धार हो जाए
लेकिन युवा हो और दरकिनार हो
तो इस देश का बंटाढार हो जाए


पाटिर्यों में सत्ता पाने की होड़
चार राज्यों में चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां सत्ता में आने के लिए जुटीं हुईं हैं। अच्छी बात है, विकास सभी पार्टियां करना चाहती हैं। लेकिन अगर पार्टियां सिर्फ विकास पर ही ध्यान देने लग जाएंगी तो फिर राजनीति कौन करेगा। असल में मेरा ऐसा मनना है कि आज भी राजनीति में युवा नहीं आना चाहता। यदि वह आना भी चाहता है तो विश्वविद्यालयों में छात्र चुनाव पर रोक लगा दी जाती है। असल में इसका एक दूसरा पहलू भी है। छात्र पढ़ाई तो करते नहीं और न ही राजनीति करते हैं। वे केवल गुण्डागर्दी करते हैं। सत्ता में रहने वाली सरकार के पक्ष में रहने वाले छात्र सारेआम शहर में गुण्डागर्दी करते हैं। यहां तक की विश्वविद्यालय के कुलपति को तक अपनी धौंस जमाते हैं। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। इसलिए कई राज्य सरकारों ने छात्र चुनाव पर रोक लगा दी है।

क्यों हैं हमारे युवा उदास
यहीं वजह है कि युवाओं में राजनीति के प्रति उदासीनता आ गई है। जब भी कोई खबरिया चैनल या अखबर युवाओं से राजनीति या वोटिंग करने के मुद्दे पर बात करते हैं तो न जाने क्यूं वह युवा हो या युवती ऐसा मुंह बिचकाते हैं जैसे उसे नीम का जूस पिला दिया गया हो। उनका सीधा सा जवाब होता है कि नेता तो काम करते नहीं है और भ्रष्टचार में लिप्त हैं। भारत की राजनीति खराब हो गई। सब करो पर राजनीति में मत जाओ, जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी। उन्हें शायद यह नहीं मालूम कि आप किस कीमत का खाना, पहनना और अन्य सुविधाओं का उपभोग करेंगे वह सब विधानसभा या संसद में तय होता है। अगर राजनीति को गंदा कहने लगोगे तो राजनीति का कभी भी भला नहीं हो सकेगा। राजनीति को साफ सुथरा करने के लिए राजनीति में आना ही पड़ेगा।

राजनेताओं ने किया नाराज
असल में हमारे राजनेताओं ने भी काफी हद तक हमारे युवाओं को भी नाराज किया है। लगभग सभी दलों को देखे तो उनमें उम्रदराज लोग हैं। महिलाओं की भागीदारी काफी कम है। दूसरी पांक्ति के नेता नदारद हैं। बूढ़े हो गए हैं, लेकिन राजनीति को अलविदा नहीं कहते। जब तक जान है, तब तक चुनाव लडऩा चाहते हैं और सत्ता का सुख भोगना चाहते हैं।

सिर्फ युवा लड़े चुनाव तो क्या होगा
भारतीय राजनीति में जबर्दस्त फेरबदल की जरूरत है। मेरा मानना है कि यदि दलों को चुनाव जीतना ही है तो राज्य की सभी सीटों पर 25 से 30 वर्षों के युवाओं को टिकट दे दी जानी चाहिए थी। आखिर दलों को बगावत को सहन करना ही था। यदि वे 75 फीसदी टिकट युवतियों और 25 फीसदी युवाओं को दे दिया जाता तो नजारा कुछ और ही होता। यदि ऐसा तो सोचो कैसा होता। वो ऐसा कि विधानसभा में सिर्फ युवा ही युवा दिखाई देते, जो एक नई ऊर्जा से भरे होते। युवा गंभीर भी होते कि उन्हें कुछ करना है। हमारे बढ़े राजनेताओं का अनुभव से वे विकास की ओर अग्रसर होते। दुनिया के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद पर आसीन लोगों पर नजर डाले तो पता चलता है कि उनकी उम्र 45 से 47 के बीच मिल जाएगी। ऐसे में काम करने वाले लोग ऊर्जावान होते हैं।

राजीव गांधी ऊर्जावान थे
अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि हमारे देश में राजीव गांधी एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो काफी कम उम्र के थे। वे पायलट थे, लेकिन राजनीति में आए। राजनीति उनका प्रोफेशन नहीं था। इसके बावजूद वे राजनीति में आए। देश की जनता ने उन्हें सर आंखों पर बैठाया भी। लेकिन वे आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। इसके बाद इतना युवा प्रधानमंत्री इस देश को नहीं मिला। भारत जवान है, क्योंकि यहां अब अधिकतर युवा हैं। लेकिन मुझे अफसोस है कि यहां के राजनेता उम्रदराज हैं। कुछ युवा केन्द्रीय राजनीति में हैं लेकिन वो मुझे सिर्फ डमी के रूप में ही नजर आते हैं। असल में भारत तभी जवान रहेगा जब कोई युवा प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की कुर्सी पर होगा। वरना भारत लाख कोशिश कर यह साबित जरूर करे कि हमारे देश में युवा बहुत हैं, लेकिन वे अन्य क्षेत्रों में हैं।